भारत
में पंचायती राज व्यवस्था - एक परिचय
“पंचायत हमारी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता, सुदृढ़ता और सुव्यवस्था तथा हमारे मृत्युंजयी लोकतन्त्र का रक्षा कवच है।“
किसी भी समुदाय, समाज या राष्ट्र की समृद्धि एवं उन्नति सम्बन्ध संस्थाओं के उन अन्तर्तन्तुओं के प्रसार का प्रतिफलन होता है जिनकी सन्दर्भीय समाज या समुदाय में पूर्णतः पैठ होती है |
किसी भी समुदाय, समाज या राष्ट्र की समृद्धि एवं उन्नति सम्बन्ध संस्थाओं के उन अन्तर्तन्तुओं के प्रसार का प्रतिफलन होता है जिनकी सन्दर्भीय समाज या समुदाय में पूर्णतः पैठ होती है |
‘लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण’ में पंचायती राज संस्थाओं की अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। पंचायतों की परिकल्पना अपने देश में कोई नवीन नहीं, अपितु यह प्राचीन काल से ही मानव समाज के ताने-बाने का अभिन्न हिस्सा रही है। पंचायती राज संस्थाएँ भारत के ग्रामीण विकास में जो सहयोग प्रदान कर रही हैं वह किसी भी
प्रकार कम नहीं
है।
महात्मा गाँधी नें ग्राम स्वराज की कल्पना
की थी , उनका मानना था की पंचायती राज ग्राम स्वराज का आधार है| महात्मा गाँधी नेंअपनी पुस्तक “माई पिक्चर ऑफ फ्री इंडिया “ में
पंचायती राज का उल्लेख किया है | गाँवों का सर्वांगीण विकास
ग्राम पंचायतों द्वारा ही हो सकता है |
आधुनिक
भारत में पंचायती राज का बीजारोपन
- 1667 में मद्रास में नगर परिषद की स्थापना |
- लॉर्ड रिपन ने ठोस बुनियाद रखी- 1882 में – जिला बोर्ड,ग्राम पंचायत, न्याय पंचायत | इस कारण ही उन्हें “ स्थानीय शासन का पिता” कहा जाता है |
- 1919 में मोटेग्यु चेम्सफोर्ड सुधार के तहत स्थानीय शासन को वैधानिक दर्जा दिया गया था | सर्व प्रथम बंगाल में |
- राजस्थान के जयपुर रियासत में 1938 में पंचायत अधिनियम लागू किया गया था |
भारत में पंचायती राज संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-40 में सरकार को ग्राम पंचायतों के गठन का निर्देश देते हुए कहा गया है कि- राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करेगा और उनको वे सभी अधिकार प्रदान करेगा जिससे वे स्वायतशासी इकाईयों के रूप में प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए योग्य हो जाए।
1950 में भारतीय संविधान के लागू होने के बाद शासन
का विकेन्द्रीकरण सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न राज्यों द्वारा ग्राम पंचायतों की स्थापना के प्रयास शुरू हुए और 1952 में गांवों के सर्वांगीण विकास के लिए “सामुदायिक विकास कार्यक्रम” शुरू किया
गया |
‘बलवन्त राय
मेहता समिति’
इन कार्यक्रमों को सफल बनाने तथा जन सहयोग जुटाने के लिए ‘बलवन्त राय
मेहता समिति’ का गठन किया गया। समिति ने 1957 में अपने प्रतिवेदन में त्रिस्तरीय पंचायती राज योजना का प्रारूप प्रस्तुत किया। इसी को सामान्यत: लोकतंत्र का विकेन्द्रीकरण कहा जाता है।
बलवन्त राय
मेहता समिति ने ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, ब्लॉक
या खण्ड स्तर पर पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद के गठन का सुझाव दिया था।
सबसे
पहले पंचायती राज
भारत में पंचायती राज योजना को लागू करने वाले प्रथम दो राज्य राजस्थान और आन्ध्र प्रदेश थे। आधुनिक भारत में प्रथम बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर जिले के “बगदरी” गाँव में 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई।
पंचायती राज व्यवस्था के सुदृढ़िकरण एवं इसकी
सफलता के लिए-
· बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशें (1957) :- इस
समिति
ने
भारतीय
लोकतंत्र
की
सफलता
के
लिए
लोकतंत्र
की
इमारत
को
मजबूत
करने
की
आवश्यकता
पर
बल
दिया
|
· अशोक मेहता समिति की सिफारिशें
(1977) :- राज्य में विकेन्द्रीकरण का प्रथम स्तर ज़िला हो,ज़िला स्तर के नीचे मण्डल पंचायत का गठन किया जाए, जिसमें क़रीब 15000-20000 जनसंख्या एवं 10-15 गाँव शामिल हों,
ग्राम पंचायत तथा पंचायत समिति को समाप्त कर देना चाहिए |
ग्राम पंचायत तथा पंचायत समिति को समाप्त कर देना चाहिए |
· पी वी के राव समिति (1985) :-
इस समिति ने राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद्, ज़िला स्तर पर ज़िला परिषद्, मण्डल स्तर पर मण्डल पंचायत तथा गाँव स्तर पर गाँव सभा के गठन की सिफ़ारिश की।
· डॉ एल.एम.सिन्घवी समिति (1986) :-
इस समिति ने ग्राम पंचायतों को सक्षम बनाने के लिए गाँवों के पुनर्गठन की सिफ़ारिश की तथा साथ में यह सुझाव भी दिया कि गाँव पंचायतों को अधिक वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराया जाए।
ग्राम सभा को ग्राम पंचायत के अधीन किसी भी समिति की जाँच करने का अधिकार|
पी.वी.नरसिंहा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के समय 22 दिसम्बर, 1992 को 73वें संविधान संशोधन विधेयक 1992 के रूप में यह विधेयक लोक सभा में तथा 23 दिसम्बर, 1992 को दूसरे ही दिन सर्वसम्मति से राज्यसभा में भी पारित हो गया था। इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा को यह विधेयक भेजा गया। 20 अप्रैल, 1993 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद 24 अप्रैल, 1993 को इसे पंचायती राज कानून के रूप में पूरे भारत वर्ष में लागू किया गया। इसी कारण आज भारत में प्रतिवर्ष 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता है।
73वें संविधान संशोधन पंचायती राज:एक नजर
भारत में 73वें संविधान संशोधन के तहत ही पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा मिला। 73 वां संविधान संशोधन द्वारा संविधान के भाग – 9 में अनुच्छेद 243 के अंतर्गत 243क से 243ण तक अनुच्छेद जोडे गऐ , तथा एक अनुसुची – 11 जोडी गई जो सभी पंचायती राज से संबंधित हैं अनुसूची – 11 में कुल 29 बिषय हैं जिन पर पंचायतें कानून बना सकती हैं |
- एक त्रि-स्तरीय ढांचे की स्थापना (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति या मध्यवर्ती पंचायत तथा जिला पंचायत)|
- ग्राम स्तर पर ग्राम सभा की स्थापना |
- हर पांच साल में पंचायतों के नियमित चुनाव |
- अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण |
- महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण |
- पंचायतों की निधियों में सुधार के लिए उपाय सुझाने हेतु राज्य वित्ता आयोगों का गठन |
- राज्य चुनाव आयोग का गठन |
2009 में पंचायती राज मंत्रालय की ओर से 110वां संविधान संशोधन विधेयक भी लाया गया था, जिसके तहत त्रिस्तीय पंचायती चुनावों में सीटों तथा अध्यक्ष के 50 प्रतिशत पद महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान किया गया।
ग्राम सभा
ग्राम सभा किसी एक गांव या पंचायत का चुनाव करने वाले गांवों के समूह की मतदाता सूची में शामिल व्यक्तियों से मिलकर बनी संस्था है। गतिशील और प्रबुध्द ग्राम सभा पंचायती राज की सफलता के
केंद्र में होती है| ग्राम सभा का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से होता है |
ग्राम पंचायत का गठन
सरपंच
- ग्राम पंचायत की न्यायपालिका को ग्राम कचहरी कहते हैं जिसका प्रधान सरपंच होता है |
- सरपंच का निर्वाचन मुखिया की तरह ही प्रत्यक्ष ढंग से होता है, सरपंच का कार्यकाल 5 वर्ष है |
- उसे कदाचार, अक्षमता या कर्तव्यहीनता के कारण सरकार द्वारा हटाया भी जा सकता है |
- अगर 2/3 पंच सरपंच के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास कर दें, तो सरकार सरपंच को हटा सकती है |
- सरपंच का प्रमुख कार्य ग्राम कचहरी का सभापतित्व करना है कचहरी के प्रत्येक तरह के मुक़दमे की सुनवाई में सरपंच अवश्य रहता है |
- सरपंच ही मुक़दमे को स्वीकार करता है तथा मुक़दमे के दोनों पक्षों और गवाहों को उपस्थित करने का प्रबंध करता है |
- वह प्रत्येक मुकदमे की सुनवाई के लिए दो पंचों को मनोनीत करता है |
- ग्राम कचहरी की सफलता बहुत हद तक उसकी योग्यता पर निर्भर करती है |
पंचायत सेवक
- प्रत्येक ग्राम पंचायत का एक कार्यालय होता है, जो एक पंचायत सेवक के अधीन होता है |
- पंचायत सेवक की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा होती है | उसे राज्य सरकार द्वारा निर्धारित वेतन भी मिलता है |
- ग्राम पंचायत की सफलता पंचायत सेवक पर ही निर्भर करती है |
- वह ग्राम पंचायत के के सचिव के रूप में कार्य करता है और इस नाते उसे ग्राम पंचायत के सभी कार्यों के निरीक्षण का अधिकार है |
- वह मुखिया, सरपंच तथा ग्राम पंचायत को कार्य-संचालन में सहायता देता है. राज्य सरकार द्वारा उसका प्रशिक्षण होता है|
- ग्राम पंचायत के सभी ज्ञात-अज्ञात प्रमाण पंचायत सेवक के पास सुरक्षित रहते हैं|
- अतः, वह ग्राम पंचायत के कागजात से पूरी तरह परिचित रहता है और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें पेश करता है|
- संक्षेप में, ग्राम पंचायत के सभी कार्यों के सम्पादन में उसका महत्त्वपूर्ण स्थान है|
ग्राम पंचायत के कार्य
- पंचायत क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजनाएँ तैयार करना
- वार्षिक बजट तैयार करना |
- प्राकृतिक आपदा में साहयता-कार्य पूरा करना |
- लोक सम्पत्ति से अतिक्रमण हटाना |
- कृषि और बागवानी का विकास और उन्नति |
- बंजर भूमि का विकास |
- पशुपालन, डेयरी उद्योग और मुर्गीपालन |
- चारागाह का विकास |
- गाँवों में मत्स्यपालन का विकास |
- सड़कों के किनारे और सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण |
- ग्रामीण, खादी एवं कुटीर उद्योगों का विकास |
- ग्रामीण गृह-निर्माण, सड़क, नाली पुलिया का निर्माण एवं संरक्षण |
- पेय जल की व्यवस्था |
- ग्रामीण बिजलीकरण एवं गैर-परम्परागत ऊर्जास्रोत की व्यवस्था एवं संरक्षण |
- प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों सहित शिक्षा, व्यस्क एवं अनौपचारिक शिक्षा, पुस्तकालय, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि की व्यवस्था करना |
- ग्रामीण स्वस्थता, लोक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण कार्यक्रम, महिला एवं बाल विकास, विकलांग एवं मानसिक रूप से मंद व्यक्तियों, कमजोर वर्ग खासकर अनुसूचित जाती एवं जनजाति के कल्याण-सबंधी कार्यक्रमों को पूरा करना |
- जन वितरण प्रणाली की उचित व्यवस्था करना |
- धर्मशालाओं, छात्रवासों, खातालों, कसाईखानों, सार्वजनिक पार्क, खेलकूद का मैदान, झोपड़ियों का निर्माण एवं व्यवस्था करना
ग्राम पंचायत की आय के स्रोत क्या हैं?
- भारत सरकार से प्राप्त अंशदान, अनुदान या ऋण अथवा अन्य प्रकार की निधियाँ |
- राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त चल एवं अचल सपंत्ति से प्राप्त आय
- भूराजस्व एवं सेस से प्राप्त राशियाँ |
- राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त अंशदान, अनुदान या ऋण सबंधी अन्य आय |
- राज्य सरकार की अनुमति से किसी निगम, निकाय, कम्पनी या व्यक्ति से प्राप्त अनुदान या ऋण |
- दान के रूप में प्राप्त राशियाँ या अंशदान |
- सरकार द्वारा निर्धारित अन्य स्रोत |
पंचायत समिति
बलवंतराय समिति की अनुशंसा के अनुसार पंचायती राज के लिए प्रखंड स्तर पर भी ग्राम स्वशासन की व्यवस्था की गई है| प्रखंड स्तर पर गठित निकाय पंचायत समिति कहलाता है| प्रत्येक प्रखंड (Development
Block) में एक पंचायत समिति की स्थापना होती है जिसका नाम उसी प्रखंड के नाम पर होता है| राज्य सरकार को पंचायत समिति के क्षेत्र को घटाने-बढ़ाने का अधिकार होता है|
पंचायत समिति सदस्य
- प्रखंड की प्रत्येक पंचायत के सदस्यों द्वारा निर्वाचित दो सदस्य होंगे|
- पंचायत समिति के अंतर्गत प्रत्येक ग्राम पंचायत का मुखिया पंचायत समिति का सदस्य होगा|
- प्रखंड के अंतर्गत चुनाव क्षेत्रों द्वारा निर्वाचित राज्य विधान सभा और संघीय लोक सभा के सभी सदस्य होंगे|
- विधान परिषद् और संघीय राज्य सभा के वे सभी सदस्य, जो उस प्रखंड के निवासी हों|
सदस्यों का कार्यकाल पाँच वर्ष होगा| यदि पदेन सदस्य इस पद पर नहीं रहे जिस पद के अधिकार से वह सदस्य बना हो, तो वह पंचायत समिति का सदस्य नहीं भी रह सकेगा| राज्य सरकार द्वारा पर्याप्त कारणों से यथासमय निर्वाचन नहीं होने की स्थिति में पंचायत समिति के निर्वाचित पदधारकों की पदावधि पाँच
वर्षों की अवधि के अतिरिक्त छह मास तक बढ़ाई जा सकेगी|
वही व्यक्ति पंचायत समिति का सदस्य हो सकेगा, जो —
- भारत का नागरिक हो
- 25 वर्ष की आयु का हो
- सरकार के अन्दर किसी लाभ के पद पर न हो |
जिला परिषद्
प्रत्येक जिला
में एक परिषद् की स्थापना होगी. जिला परिषद् के निम्नलिखित सदस्य होंगे –
- क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों से सीधे निर्वाचित सदस्य. प्रत्येक सदस्य जिला परिषद् क्षेत्र की यथासंभव 50,000 की जनसंख्या के निकटतम का प्रतिनिधित्व करेगा. निर्वाचित सदस्यों की संख्या जिलाधिकारी द्वारा निश्चित की जाएगी. प्रत्येक क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्र से एक सदस्य निर्वाचित किया जाएगा.
- जिले की सभी पंचायत समितियों के प्रमुख.
- लोक सभा और राज्य विधान सभा के वैसे सदस्य जो जिले के किसी भाग या पूरे जिले का प्रतिनिधित्व करते हों और जिनका निर्वाचन क्षेत्र जिले के अंतर्गत पड़ता हो.
- राज्य सभा और राज्य विधान परिषद् के वैसे सदस्य जो जिले के अंतर्गत निर्वाचक के रूप में पंजीकृत है |
स्थानों का आरक्षण
निर्वाचित सदस्यों के लिए स्थानों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है| अनुसूचित-जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्गों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण की व्यवस्था की गई है| आरक्षित स्थानों 1/3 भाग अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग को महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे| इसके अतिरिक्त पंचायत समिति में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जानेवाले स्थानों की कुल संख्या के 1/3 स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे|
जिला परिषद् की बैठक
जिला
परिषद् की कम-से-कम तीन माह में एक बार अवश्य बैठक होगी.
गठन के बाद जिला परिषद् की पहली बैठक की तिथि जिलाधिकारी द्वारा निश्चित की जाएगी जो उस बैठक की अध्यक्षता भी करेगा. कुल सदस्यों के पाँचवें भाग द्वारा माँग किये जाने पर 10 दिनों के अंतर्गत जिला परिषद् की विशेष बैठक बुलाई जा सकती है|
जिला परिषद् का कार्यकाल
जिला
परिषद् का कार्यकाल उसकी प्रथम बैठक की निर्धारित तिथि से अगले पांच वर्षों तक का निश्चित किया गया है|
जिला परिषद अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष
जिला
परिषद् के निर्वाचित सदस्य यथाशीघ्र अपने में से दो सदस्यों को क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में निर्वाचित करेंगे |जिला
परिषद् की बैठक बुलाने, उसकी अध्यक्षता करने एवं उसका सञ्चालन करने का अधिकार अध्यक्ष का ही है| इसके
अतिरिक्त जिला परिषद् के सभी पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों पर पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण रखना, जिला परिषद् की कार्यपालिका एवं प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण रखना, जिले में प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों को राहत दिलाना इत्यादि उसके मुख्य कार्य हैं|
पंचायती
राज की चुनौतियाँ
पंचायती राज
में ग्रामीण जनता के विकास के लिए केन्द्र, राज्य एवं स्थानीय सरकार द्वारा समय-समय पर विकास की योजनाओं का निर्माण एवं क्रियान्वयन तो किया जाता है,लेकिन पंचायती राज की कार्यप्रणाली के क्रियान्वयन में चुनौतियों कें कारण इन योजनाओं का लाभ उन ग्रामीणों तक नहीं पहुंच पाता है, जो वास्तव में जरूरतमंद है, इस चुनौतियों के पीछे प्रशासकीय क्रियान्वयन अभिकरणों से संबंधित तंत्रों के कारण प्रति-दिन बढ़ती ही जा रही है।
विकास की समस्याएँ निम्न लिखित है-
· योग्य
प्रशासकों एवं विशेषज्ञों की चुनौती |
· विश्वसनीय आँकड़ों व तथ्यों की कमी का
होना |
· जन-प्रतिनिधि व अधिकारी वर्ग में सम्बन्धों की
चुनौती |
· जनकल्याण कारी योजनाओं में अनियमितता का होना या जनता को योजना का लाभ ना पहुँचना |
· नौकरशाही का बढ़ता प्रभाव |
· योजनाओं में जनसहभागिता की कमी का होना |
· जन-कल्याण कारी योजनाओं के क्रियान्वयन में ढीलापन होना|
· योजनाओं में व्यक्तिगत हितों पर ज्यादा ध्यान देना |
· प्रशासनिक मशीनरी का लोक-कल्याण कारी ना होना |
· अशिक्षा व गरीबी का होना |
· लोगों में जन-संवाद का अभाव होना |
· पंचायतों के पास ज्यादा आर्थिक संसाधनों का ना होना |
· दल-गत राजनीति का बढ़ता प्रभाव |
पंचायती
राज की चुनौतियाँ
का समाधान
- आम जनता और अधिकारी वर्ग में आपसी तालमेल होना चाहिए |
- पंचायतों में लगे विशेषज्ञों को स्वतंत्र नीति पर कार्य को करने की जरूरत |
- जनता व अधिकारी वर्ग में तथ्यों की वास्तविक जानकारी का होना |
- विकास योजनाओं की कार्य-गति का तेज होना |
- दल-गत राजनीति से दूर होना |
- आर्थिक संसाधनों का भरपूर प्रयोग की अनुमति |
- भ्रष्टाचार पर पूर्णत:नकेल कसना |
- विकास कार्यों का समय पर मूल्यांकन करना |
- शिक्षा प्रणाली पर शत प्रतिशत कार्य करना |
- लोगों को योजनाओं के बारे में जागरूक करना |
- लोगों की पूर्ण भागीदारी पर बल देना |
- नौकरशाही की तानाशाही पर नकेल कसना |
- व्यक्तिगत योजनाओं के स्थान पर सामूहिक योजनाओं की क्रियान्विति पर बल देना |
वस्तुत: यह आज आवश्यक हो गया कि
शासन और जनता दोनों को अपनी ज़िम्मेदारी व जबाबदारी निभाने के साथ ही इस मिनी संसद को वास्तविक अर्थों में अपनी सफल भूमिका कि और आगे बढ़ाना है | आज इस स्थानीय शासन की
महत्वपूर्ण इकाई को साफ-सुथरा
बनाने व कारगर बनाने के लिए हर स्तर
पर कार्य करना होगा और यह कार्य हम सब को सामूहिक प्रयासों द्वारा ही करना है ताकि गाँधी
जी के वास्तविक स्वराज को हम प्राप्त
कर सकें |
Excellent very helpful material.
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