अध्याय 7.जन आंदोलन : चिपको
आंदोलन
आज पूरी दुनिया लगातार बढ़ रही वैश्विक गर्मी और पर्यावरण प्रदूषण से चिन्तित है। बिगड़ता पर्यावरण संतुलन, अंधाधुंध पेड़ों की कट्टाई, और बढ़ रहे सीमेंट और कंक्रीट के जंगल, तेजी बढ़ते वाहन, ए.सी.,
फ्रिज, तेजी से सिकुड़ते ग्लेशियर तथा भोगवादी पश्चिमी जीवन शैली व संस्कृति इसका प्रमुख कारण है।
चिपको आंदोलन का मतलब और लक्ष्य
“ऐसे आंदोलन जो स्वयं सेवी संगठनों,जनता,छात्र आंदोलन, या स्थानीय तथा शहरी जनता द्वारा किसी समस्या के पीड़ित होकर करती है उसे जन आंदोलन कहा जाता है - जैसे – चिपको |
“चिपको आंदोलन की शुरुआत Embrace शब्द से हुई जिसका मतलब था कि गले लगना |गांव के लोग ठेकेदारों को पेड़ काटने से रोकने के लिए पेड़ से पूरी तरह से चिपक जाते थे चिपको आन्दोलन का सांकेतिक अर्थ यही है कि पेड़ों को बचाने के लिये पेड़ों से चिपक कर जान दे देना, परन्तु पेड़ों को नहीं काटने देना है. अर्थात प्राणों की आहुति देकर भी पेड़ों की रक्षा करना है. इसी तरह विश्नोई समाज मरते दम तक पेड़ों से चिपक कर उनकी रक्षा सदियों से करता आया है, और कर रहा है|
“चिपको आंदोलन की शुरुआत Embrace शब्द से हुई जिसका मतलब था कि गले लगना |गांव के लोग ठेकेदारों को पेड़ काटने से रोकने के लिए पेड़ से पूरी तरह से चिपक जाते थे चिपको आन्दोलन का सांकेतिक अर्थ यही है कि पेड़ों को बचाने के लिये पेड़ों से चिपक कर जान दे देना, परन्तु पेड़ों को नहीं काटने देना है. अर्थात प्राणों की आहुति देकर भी पेड़ों की रक्षा करना है. इसी तरह विश्नोई समाज मरते दम तक पेड़ों से चिपक कर उनकी रक्षा सदियों से करता आया है, और कर रहा है|
1730 में जोधपुर ( राजस्थान ) के राजा (अभय सिंह के राज में – राजा को महल बनवाना था )खेजड़ली में पेड़ों की रक्षा के लिए विश्नोई समाज ने जो बलिदान दिया है वो मानव इतिहास में अद्वितीय है |खेजड़ली गांव में प्रकृति के प्रति समर्पित इसी बिश्नोई समाज की 42
वर्षीय महिला “अमृता देवी” के परिवार में उनकी तीन पुत्रियां “आसु, रतनी, भागु बाई और पति रामू खोड़” थे, ने जो बलिदान दिया है,वो मानव इतिहास में अद्वितीय है|
चिपको आंदोलन को व्यापक रूप से पहली बार 26
मार्च साल 1974 में वर्तमान उत्तराखण्ड के चमौली में देखा गया था |
26 मार्च 2018 को गूगल नें डूडल बनाकर इस आंदोलन की एनिवरसरी मनाई थी |
चिपको आंदोलन में महिलाओं की भूमिका
“गौरादेवी” के नेतृत्व में वर्तमान के उत्तराखण्ड के चमौली में बड़ी संख्या में महिलाओं ने ठेकेदारों को पेड़ काटने से रोकने के लिए पेड़ों से लिपट गई थीं । चिपको आंदोलन वनों का अव्यावहारिक कटान रोकने और वनों पर आश्रित लोगों के वनाधिकारों की रक्षा का आंदोलन था | रेणी में 24 सौ से अधिक पेड़ों को काटा जाना था,
इसलिए इस पर वन विभाग और ठेकेदार जान लडाने को तैयार बैठे थे जिसे गौरा देवी जी के नेतृत्व में रेणी गांव की 27 महिलाओं ने प्राणों की बाजी लगाकर असफल कर दिया था।
साल 1980
तक पेड़ों और जंगलों को काटे जाने से रोकने के लिए चिपको आंदोलन पूरे देश में चलाया जाने लगा था |उस दौर में लोगों के जीवनयापन का एक बहुत बड़ा हिस्सा जंगलों पर निर्भर था |लोगों के अनुसार यदि हिमालय पर ही जंगल नही रहेंगे तो पूरा भारत जल्द ही एक रेगिस्तान में बदल जाएगा |चिपको आंदोलन का लक्ष्य पेड़ों और जंगलों की रक्षा और उनका संरक्षण था |चिपको आंदोलनों में महिलाओं ने बड़ी मात्रा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था क्योंकि उस दौर में विकास, स्टॉक औऱ बच्चों की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं के ऊपर ही थी |
मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता वंदना शिवा ने अपनी चर्चित किताब ‘स्टेइंग अलाइव: वीमेन इकोलॉजी एंड सर्वाइवल इन इंडिया’
में चिपको आंदोलन के इस पहलू पर विस्तार से लिखा है | जिसका पूरा ताना-बाना महिलाओं ने ही बुना था |चिपको आंदोलन का जब भी जिक्र होता है तो यह कहा तो जाता है कि इस आंदोलन में महिलाओं की मुख्य और सक्रिय भूमिका रही है|
महिलाओं की भूमिका पर चर्चा करने को बेहद जरूरी बताते हुए वंदना लिखती हैं, ‘जिन महिलाओं ने चिपको को एक बड़े आंदोलन में बदलने के लिए उत्प्रेरक की भूमिका निभाई वे थीं मीरा बेन, सरला बेन, बिमला बेन, हिमा देवी, गौरा देवी, गंगा देवी, बचना देवी, इतवारी देवी, छमुन देवी और कई अन्य |’ वे आगे लिखती हैं, ‘सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट, घनश्याम ‘शैलानी’ और धूम सिंह नेगी जैसे आंदोलन से जुड़े पुरुष इन्हीं महिलाओं के छात्र और अनुयायी रहे हैं|
लेकिन उनकी इस मुख्य भूमिका को बस एक पंक्ति में ही समेट दिया जाता है जो कहती है - ‘चिपको आंदोलन का नेतृत्व महिलाओं ने किया था.’ इसके अलावा चिपको आंदोलन का पूरा श्रेय कुछ चुनिंदा लोगों तक ही सीमित कर दिया जाता है | 4जुलाई, 1991 को चिपको आंदोलन की प्रणेता गौरादेवी का देहांत हो गया।
यद्यपि जंगलों का कटान अब भी जारी है। नदियों पर बन रहे दानवाकार बांध और विद्युत योजनाओं से पहाड़ और वहां के निवासियों का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। गंगा-यमुना जैसी नदियां भी सुरक्षित नहीं हैं; पर रैणी के जंगल अपेक्षाकृत आज भी हरे और जीवंत हैं। सबको लगता है कि वीरमाता गौरादेवी आज भी अशरीरी रूप में अपने गांव के जंगलों की रक्षा कर रही हैं।
महिलाओं की भूमिका पर चर्चा करने को बेहद जरूरी बताते हुए वंदना लिखती हैं, ‘जिन महिलाओं ने चिपको को एक बड़े आंदोलन में बदलने के लिए उत्प्रेरक की भूमिका निभाई वे थीं मीरा बेन, सरला बेन, बिमला बेन, हिमा देवी, गौरा देवी, गंगा देवी, बचना देवी, इतवारी देवी, छमुन देवी और कई अन्य |’ वे आगे लिखती हैं, ‘सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट, घनश्याम ‘शैलानी’ और धूम सिंह नेगी जैसे आंदोलन से जुड़े पुरुष इन्हीं महिलाओं के छात्र और अनुयायी रहे हैं|
लेकिन उनकी इस मुख्य भूमिका को बस एक पंक्ति में ही समेट दिया जाता है जो कहती है - ‘चिपको आंदोलन का नेतृत्व महिलाओं ने किया था.’ इसके अलावा चिपको आंदोलन का पूरा श्रेय कुछ चुनिंदा लोगों तक ही सीमित कर दिया जाता है | 4जुलाई, 1991 को चिपको आंदोलन की प्रणेता गौरादेवी का देहांत हो गया।
यद्यपि जंगलों का कटान अब भी जारी है। नदियों पर बन रहे दानवाकार बांध और विद्युत योजनाओं से पहाड़ और वहां के निवासियों का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। गंगा-यमुना जैसी नदियां भी सुरक्षित नहीं हैं; पर रैणी के जंगल अपेक्षाकृत आज भी हरे और जीवंत हैं। सबको लगता है कि वीरमाता गौरादेवी आज भी अशरीरी रूप में अपने गांव के जंगलों की रक्षा कर रही हैं।
चिपको आंदोलन : मुख्य बिन्दु
- यह आंदोलन पर्यावरण की रक्षा हेतु किया गया थ
- यह आंदोलन वर्ष 1973 में वर्तमान उत्तराखंड राज्य के एक गाँव से शुरू हुआ था जो धीरे धीरे चारों और फेल गया |
- गाँव वालों ने अपने खेती-बाड़ी के औज़ार बनाने के लिए “अंगू” पेड़ को काटने की वन विभाग से अनुमति मांगी जो की नहीं मिली |
- जबकि सरकार ने खेल सामग्री के विनिर्माता को व्यावसायिक इस्तेमाल कीअनुमति प्रदान कर दी |
- गाँव में महिलाओं और पुरुषों में पेड़ों की कटाई का विरोध किया और पेड़ों से चिपक गए |
- इस आंदोलन में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण थी |
- जल,जंगल,जमीन पर स्थानीय जनता का अधिकार हो |
- स्थानीय लोगों को कम कीमत पर सामग्री मिलनी चाहिए |
- सरकार विकास के नाम पर पारिस्थितिकी संतुलन को खतरे मे न डाले |
- न्यूनतम मजदूरी की गारंटी सुनिश्चित हो |
चिपको आंदोलन से खुली इन्दिरा गाँधी सरकार की आंख
चिपको आंदोलन की मुख्य उपलब्धि यह रही कि इसने केंद्रीय राजनीति के एजेंडे में पर्यावरण को एक सघन मुद्दा बना दिया था। उत्तर प्रदेश (वर्तमान उत्तराखण्ड)में इस आंदोलन ने 1980 में तब एक बड़ी जीत हासिल की,
जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी। बाद के वर्षों में यह आंदोलन पूर्व में बिहार,
पश्चिम में राजस्थान,
उत्तर में हिमाचल प्रदेश,
दक्षिण में कर्नाटक और मध्य भारत में विंध्य तक फैला गया था।
ठेकेदारों के विरुद्ध भी महिलाओं ने शराब बंदी के विरुद्ध भी आवाज उठाई | इस आंदोलन को सफलता मिली और सरकार ने हिमालय में 15 वर्षों के लिए वनों की कटाई पर रोक लगा दी |यह आंदोलन आगामी वर्षों में सम्पूर्ण भारत में नजीर बन गया जिसके कारण पर्यावरण की रक्षा की जा सकी |
आज सारी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण की चिंता में पर्यावरण चेतना के लिये सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर विभिन्न कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. भारतीय जनमानस में पर्यावरण संरक्षण की चेतना और पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों की परम्परा सदियों पुरानी है.आओ सब मिलकर करें ये काम.......
हमारे धर्मग्रंथ, हमारी सामाजिक कथायें और हमारी जातीय परम्परायें हमें प्रकृति से जोड़ती है. प्रकृति संरक्षण हमारी जीवन शैली में सर्वोच्च् प्राथमिकता का विषय रहा है.अत: समय रहते हम सब मानव जाति को पर्यावरण और प्रकृति के बारे में सचेत होना होगा ,अन्यथा हमारे साथ भावी पीढ़ी भी गंभीर खतरों में पड़ जाएगी | आओ हम सब मिलकर इस प्रकृति की रक्षा का प्रण लेते है ताकि हमारा उपवन महकता रहे |
- प्रकृति की रक्षा का प्रण लें |
- ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएँ
- हमारी प्राकृतिक सम्पदा की रक्षा ही हमारा कल का भविष्य है |
- आधुनिकता की आड़ में प्रकृति को खतरे से बचाएँ |
- सरकारों को भी कठोर नीति व पुख्ता कानून व्यवस्था का पालन करना होगा |
- लोगों में जागरूकता का फैलाव अधिकाधिक हो |
- इको फ्रेंडली समाज और राष्ट्र का सपना साकार करना |
- समाज में यह जागरूकता फैलानी है कि प्रकृति का बचाव ही हमारा बचाव है |
- हर स्तर पर प्रकृति संरक्षण का पाठ पढ़ाना व पढ़ना होगा |
हमारे धर्मग्रंथ, हमारी सामाजिक कथायें और हमारी जातीय परम्परायें हमें प्रकृति से जोड़ती है. प्रकृति संरक्षण हमारी जीवन शैली में सर्वोच्च् प्राथमिकता का विषय रहा है.अत: समय रहते हम सब मानव जाति को पर्यावरण और प्रकृति के बारे में सचेत होना होगा ,अन्यथा हमारे साथ भावी पीढ़ी भी गंभीर खतरों में पड़ जाएगी | आओ हम सब मिलकर इस प्रकृति की रक्षा का प्रण लेते है ताकि हमारा उपवन महकता रहे |
Excellent matter for examination
ReplyDeleteVery helpful martials are available on this site
ReplyDeleteShort and easy answer to laean
ReplyDeleteथंक्यू
DeleteIt helps in my study
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