हरित क्रांति का अभिप्राय
वर्ष 1960 के दशक में पारम्परिक कृषि पद्धति
को आधुनिक तकनीकि द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने के रूप में सामने आई। क्योंकि कृषि क्षेत्र में यह तकनीकि एकाएक आई, तेजी से इसका विकास हुआ और थोड़े ही समय में इससे इतने आश्चर्यजनक परिणाम निकले कि देश के योजनाकारों, कृषि विशेषज्ञों तथा राजनीतिज्ञों ने इस अप्रत्याशित प्रगति को ही “हरित क्रान्ति” की संज्ञा प्रदान कर दी।
विश्व में हरित क्रांति लाने का श्रेय
विश्व में हरित क्रांति के जनक “नारमन
बोरलॉग “को माना जाता है | उन्होने दुनियाँ को खाधान
संकट से बाहर निकालनें के लिए सरकारों को अपनी योजनाओं को नवीन रूप देने पर बल
दिया साथ ही उच्च गुणवक्ता के बीज,उर्वरक,कीटनाशक,और बेहतर सिचाई सुविधा ,नवीन तकनीक का प्रयोग आदि पर बल दिया |
भारत में हरित क्रांति लाने का श्रेय और कैसे हुई भारत में हरित क्रांति की शुरुआत
भारत में “हरित क्रांति” की शुरुआत 1966-67
में की जाती है | भारत में इस हरित क्रांति के
जनक “एम एस स्वामीनाथन” को कहा जाता है | पूरे विश्व में हरित क्रांति के
जनक के रुप में भले ही प्रोफेसर नारमन बोरलॉग को देखा जाता हो, लेकिन भारत में हरित क्रांति के जनक के रुप में एम एस स्वामीनाथन का ही नाम लिया जाता है। क्योंकि स्वामीनाथन ने तत्कालीन कृषि मंत्री सी सुब्रहण्यम के साथ मिलकर देश में हरित क्रांति लाने पर बल दिया था। आजादी से पहले ही पश्चिम बंगाल में भीषण अकाल पड़ा, जिसमें लाखों लोगों की मौत हो गई।
1947 में मिली आजादी के देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने भी कृषि क्षेत्र पर जोर तो दिया, लेकिन उस वक्त तक भी पुराने तरीकों से ही खेती की जा रही थी, जिसकी वजह से देश में कई फसलों का आयात भी करना पड़ता था।
भारत में अनाज की उपज बढ़ाने
की सख्त जरुरत थी। और इस
प्रकार खाधान संकट से बाहर निकालनें के लिए सरकार को अपनी योजनाओं को नवीन रूप
देने पर बल दिया ताकि विदेशी निर्भरता और सहायता से निजात मिल सके | इस क्रांति के तहत “उच्च गुणवक्ता के बीज,उर्वरक,कीटनाशक,और बेहतर सिचाई सुविधा ,नवीन तकनीक का प्रयोग आदि का प्रयोग और सरकार द्वारा अनुदान से कृषि पर बल
दिया गया जिससे कृषि की पैदावार में अभूतपूर्व वृद्धि हुई,
जिसे “हरित क्रांति कहा जाता है|”
भारत में दूसरी हरित क्रान्ति
भारत कृषि विकास को गति देने के लिए 2007 में दूसरी हरित क्रांति को शुरू करने का निर्णय लिया गया है।इसके अंतर्गत देश के पूर्वी राज्यों बिहार उड़ीसा पश्चिम-बंगाल तथा गैर-सिंचित क्षेत्रों में चावल के उत्पादन को बढ़ावा दिया जायेगा।उल्लेखनीय है कि
1966-67 की प्रथम हरित क्रांति में सिंचित क्षेत्रों में गेहूँ के उत्पादन पर विशेष बल दिया गया था।दूसरी हरित क्रांति से विकास का क्षेत्रीय असंतुलन कम होगा|
अम्ब्रेला योजना / हरित क्रांति कृषोन्नति योजना
प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने कृषि क्षेत्र में “अम्ब्रेला योजना”
/ “हरित क्रांति कृषोन्नति
योजना” (Green Revolution Krishonnati Yojana) को 12 वीं पंचवर्षीय योजना से आगे यानी 2017-18
से 2019-20
तक जारी रखने की स्वीकृति दे दी है।
इस “अम्ब्रेला योजना” में
मुख्य रूप से 11 योजनाएँ/मिशन शामिल हैं।
जो कि निम्न लिखित है-
- बागबानी के एकीकृत विकास के लिये मिशन :- इसका उद्देश्य बागबानी उत्पादन बढ़ाकर, आहार सुरक्षा में सुधार करके तथा कृषि परिवारों को आय समर्थन देकर बागबानी क्षेत्र के समग्र विकास को प्रोत्साहित करना है।
- तिलहन और तेल पाम पर राष्ट्रीय मिशन :- इसका उद्देश्य देश के चिन्हित ज़िलों में उचित तरीके से क्षेत्र विस्तार और उत्पादकता बढ़ाकर चावल, गेहूँ, दालें, मोटे अनाज तथा वाणिज्यिक फसलों का उत्पादन बढ़ाना है।
- सतत् कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन :- इसका उद्देश्य विशेष कृषि पारिस्थितिकी में एकीकृत कृषि, उचित मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकी के मेल-जोल से सतत् कृषि को प्रोत्साहित करना है।
- एस .एम .ए .ई. (Submission on Agriculture Extension – SMAE) :- इसका उद्देश्य राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों आदि द्वारा संचालित विस्तार व्यवस्था को मज़बूत बनाना, खाद्य और आहार सुरक्षा हासिल करना तथा किसानों का सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण करना है, ताकि कार्यक्रम नियोजन और क्रियान्वयन व्यवस्था संस्थागत बनाई जा सके।
- बीज तथा पौध रोपण सामग्री पर उप-मिशन :- इसका उद्देश्य प्रमाणित/गुणवत्ता बीज का उत्पादन बढ़ाना, एस.आर.आर. में वृद्धि करना, कृषि से बचे बीजों की गुणवत्ता को उन्नत करना, बीज प्रजनन श्रृंखला को मज़बूत बनाना, बीज उत्पादन में नवीन टेक्नोलॉजी और तौर-तरीकों को प्रोत्साहित करना आदि है |
- कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन :- इसका उद्देश्य छोटे और मझौले किसानों तक कृषि मशीनीकरण पहुँच में वृद्धि करना, उन क्षेत्रों में कृषि मशीनीकरण बढ़ाना जहाँ कृषि बिजली की उपलब्धता कम है, जमीन के छोटे पट्टे और व्यक्तिगत स्वामित्व की उच्च लागत के कारण होने वाले आर्थिक नुकसानों की भरपाई के लिये ‘कस्टम हायरिंग सेंटरों’ को प्रोत्साहित करना, उच्च तकनीकी एवं उच्च मूल्य के कृषि उपकरणों का केंद्र बनाना, प्रदर्शन और क्षमता सृजन गतिविधियों के माध्यम से हितधारकों में जागरूकता कायम करना आदि है |
- पौध संरक्षण और पौधों के अलगाव पर उप-मिशन :- इसका उद्देश्य कीड़े-मकोड़ों, बीमारियों, अनचाहे पौधों, छोटे कीटाणुओं और अन्य कीटाणुओं आदि से कृषि फसलों तथा उनकी गुणवत्ता को होने वाले नुकसान को कम करना है। साथ ही, इसके अंतर्गत बाहरी प्रजाति के कीड़े-मकोड़ों के हमलों से कृषि जैव सुरक्षा करने और विश्व बाज़ार में भारतीय कृषि सामग्रियों के निर्यात में सहायता करने और संरक्षण रणनीतियों के साथ श्रेष्ठ कृषि व्यवहारों को प्रोत्साहित करने पर सबसे अधिक बल दिया गया है।
- कृषि गणना, अर्थव्यवस्थाएँ तथा सांख्यिकी पर एकीकृत योजना :- इसका उद्देश्य कृषि गणना करना, प्रमुख फसलों की उपज/लागत का अध्ययन करना, देश की कृषि आर्थिक समस्याओं पर शोध अध्ययन करना, कृषि सांख्यिकी के तौर-तरीकों में सुधार करना और फसल रोपण से लेकर फसल के काटे जाने तक की स्थिति के बारे में आनुक्रमिक सूचना प्रणाली बनाना है।
- कृषि सहयोग पर एकीकृत योजना :- इसका उद्देश्य सहकारी समितियों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिये वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना, क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना, कृषि विपणन, प्रसंस्करण, भंडारण, और कमज़ोर वर्गों के लिये कार्यक्रमों में सहकारी विकास में तेज़ी लाना है।
- कृषि विपणन पर एकीकृत योजना :- इसका उद्देश्य कृषि विपणन संरचना विकसित करना, कृषि विपणन संरचना में नवाचार तथा नवीनतम प्रौद्योगिकी तथा स्पर्द्धी विकल्पों को प्रोत्साहित करना है।
- राष्ट्रीय-ई-गवर्नेंस :- इसका लक्ष्य विभिन्न कार्यक्रमों के अंतर्गत किसान और किसान केंद्रित सेवाओं को लाना है। इस योजना का उद्देश्य विस्तार सेवाओं की पहुँच एवं प्रभाव को बढ़ाना, पूरे फसल चक्र में सूचनाओं और सेवाओं तक किसानों की सेवाओं में सुधार करना, केंद्र/राज्य की वर्तमान आई.सी.टी. पहलों को बढ़ाना, एकीकृत करना, किसानों की उत्पादकता बढ़ाने के लिये किसानों को समय पर प्रासंगिक सूचना उपलब्ध कराकर कार्यक्रमों की क्षमता तथा प्रभाव में वृद्धि करना है।
भारत में हरित क्रांति के लिए विभिन्न तत्वों का योगदान
- अधिक उपज देने वाली फसलों का कार्यक्रम |
- बहुफसल कार्यक्रम का होना |
- लघु सिंचाई पर बल देना |
- रासायनिक खाद, उन्नत बीज के प्रयोग पर बल देना |
- कृषि यंत्रीकरण को बढ़ावा देना |
- कृषि शिक्षा और शोध आदि पर बल देना |
- फसलों का बीमा आदि पर बल देना |
हरित क्रांति के लाभ
- गेंहू की उत्पादकता में वृद्धि होना |
- देश और समाज के विभिन्न वर्गों में ध्रुवीकरण तेज होना |
- बड़े किसानों और भू-स्वामियों को ज्यादा फायदा होना |
- पंजाब,हरियाणा,उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में पैदावार का बढ़ना
- खाधान आत्मनिर्भरता का बढ़ना |
- व्यावसायिक कृषि का बढ़ना
- तकनीक और संस्थागत परिवर्तन का होना |
- कृषकों में आत्मविश्वास का बढ़ना
- रसायनिक उर्वरकों का बढ़ना |
- उन्नत बीजों का प्रयोग बढ़ना
- कृषि शिक्षा का विस्तार हुआ |
हरित क्रांति से नुकसान
- हरित का प्रभाव सम्पूर्ण भारत में ना होना |
- किसानों और भू-स्वामियों में खाई बढ़ना |
- कुछ फसलों तक ही सीमित होना जैसे- गेंहू,बाजरा,ज्वार, आदि |
- पूंजीवादी कृषि को बढ़ावा देना जैसे - भारी तकनीक का प्रयोग और निवेश छोटे किसानों की क्षमता से बाहर होना
- भूमि सुधार का ना हो पाना |
- देश किसानों ,खेतिहरों ,भू-स्वामियों , छोटा ,बड़ा,मध्यम किसानों में बंटना और सामाजिक,आर्थिक विषमता का बढ़ना |
- आर्थिक सुविधाओं का अभाव होना |
- क्षेत्रीय असंतुलन का बढ़ना |
हरित क्रांति को सफल बनाने के लिए सुझाव
- संस्थागत ढांचा मजबूत किया जाए |
- कृषि वित्त सुविधाओं को हर स्तर के किसान तक पहुंचाना |
- कृषि रोजगार का स्तर को बढ़ावा देना |
- सिंचाई के साधनों का विकास करना |
- उचित मूल्य निर्धारण हो |
- बिचोलियों को खत्म करना |
- विदेशी हाइब्रिड क़िस्मों से सावधान रहना |
- उचित भंडारण की व्यवस्था का होना |
- अनुसंधान द्वारा भारतीय क़िस्मों का अधिकाधिक प्रयोग |
- सम्पूर्ण देश के लिय यह क्रांति होनी चाहिए |
- कृषि शिक्षा और अनुसंधान को मजबूत करना
- देशी खाद बीज पर ज्यादा ज़ोर देना |
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ReplyDeleteथैंक्स
DeleteExcellent matter
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