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भारत का संवैधानिक विकास का इतिहास ,चार्टर,एक्ट ,अधिनियम , political science notes hindi for competitive exams से संबन्धित परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण सामग्री





संवैधानिक विकास  से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

  • ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन कब प्रारम्भ 1757 से होता है|
  • भारत के संवैधानिक विकास के  "रेग्युलेटिंग एक्ट" में प्रमुख प्रावधान थे – : (1) डायरेक्टरों की नियुक्ति 4 वर्ष निश्चित करना (2) बंगाल का गवर्नर सम्पूर्ण भारत का गवर्नर होगा (3) गवर्नर जनरल की नियुक्ति  की अवधि 5 वर्ष निश्चित की गई (4)कलकता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना करना (5) सर्वोच्च न्यायालय की अपील प्रिवी कोंसिल में की जा सकती है |
  • वारेन हेस्टिंगस ने 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के तहत शासन किया था |
  • बोर्ड ऑफ कंट्रोल” की स्थापना 1784 के पिट्स इंडिया एक्ट के अधीन की गई थी, जिसमे निम्न लिखित अधिकारियों की नियुक्ति की गई थी – 6 कमिश्नर , 1 राज्य सचिव,1 अर्थ सचिव , 4 प्रिवी कोंसलर | इस एक्ट के तहत ही कर्मचारियों पर उपहार लेने पर पाबंधी लगा दी गई थी |
  • भारतीय कानून को संहिताबद्ध करने के मकसद से 1833 के एक्ट द्वारा “ विधि आयोग“ का गठन किया था |
  • भारत के संवैधानिक विकास को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1935 के अधिनियम को “ दासता का नया चार्टर “ की संज्ञा दी थी 
  • भारत के संवैधानिक विकास में "केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली" की स्थापना 1919 के अधिनियम द्वारा हुई थी |
  • 1909 के अधिनियम को “ मार्ले मिंटो सुधार अधिनियम “ के नाम से जाना जाता है |
  • 1919 में रौलेट एक्ट पारित किया गया था, इस एक्ट की खास बात यह थी की “किसी भी भारतीय को बिना मुकदमे या दंड दिये बिना जेल में बंद करने की ब्रिटिश सरकार को शक्ति मिलना”| साथ ही राष्ट्रीय आंदोलन की गति को कुचलना था |
  • भारत के संवैधानिक विकास के अधिनियम 1935 में “भारत संघ” की बात की गई थी | इस अधिनियम के 75%आधार पर ही भारतीय संविधान की रूपरेखा बनी हुई है |
  • भारत के संवैधानिक विकास में 1909 के अधिनियम के द्वारा मुसलमानों के लिए “पृथक निर्वाचन” की व्यवस्था की गई थी | इस एक्ट द्वारा अंग्रेज़ सरकार की असलियत “ फूट डालो और राज करो" सामने आ गई थी |
  • 1853 के अधिनियम द्वारा ही पहली बार “ संसदीय प्रणाली “ की साधारण शुरुआत मानी जाती है 
  • भारत के संवैधानिक विकास में1858 के अधिनियम द्वारा ही “भारत के गवर्नर जनरल “ को “भारत का वायसराय” कहा जाने लगा था |
  • ब्रिटेन की महारानी के घोषणा पत्र को ही “भारतीय स्वतंत्रता का मैग्नाकार्टा” कहा जाता है |
  • 1861 मे पहला भारत परिषद अधिनियम पारित किया गया था |इस अधिनियम का उद्देश्य (1)प्रशासन मे भारतीयों को शामिल करना था (2) पहली बार विभागीय प्रणाली की शुरुआत हुई (3) विधान परिषदों की स्थापना की गई –बंगाल,उत्तर-पश्चिम प्रांत ,पंजाब (4) बंबई और मद्रास की परिषदों को अपने लिए कानून मै संशोधन की शक्ति दी गई  (5) लॉर्ड केनिंग ने 1862 मै तीन भारतीयों को अपनी परिषद मे जगह दी – बनारस के राजा , पटियाला के राजा और दिनकर राव |
  • 1 जनवरी 1874 को ईस्ट इंडिया कंपनी को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया था |
  • 1892 परिषद अधिनियम द्वारा - विधान परिषद के सदस्यों को बजट पर विवाद करने, सार्वजनिक हित के मुद्दों पर प्रश्न पूछने का अधिकार मिला था |
  • पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1935 के अधिनियम को “ बाहरी रूप से जनतांत्रिक किन्तु आंतरिक रूप पूर्णतया खोखला “ बताया था |
  • भारत के संवैधानिक विकास में भारतीय स्वतंत्रताअधिनियम 1947 द्वारा ब्रिटिश राज का अंत हुआ था |
  • 1935 के अधिनियम में निम्न लिखित प्रावधान थे –
  • (1) संघीय न्यायालय की स्थापना की गई
  •  (2) प्रान्तों को स्वायतता दी गई 
  • (3) गवर्नर जनरल को विशेष अधिकार दिये गए 
  • (4) मद्रास , बंबई ,बंगाल,संयुक्त प्रांत,बिहार,असम में द्विसदनीय विधानमंडल की स्थापना की गई थी 
  • (5) शक्तियों का विभाजन किया गया था 
  • (6) द्विसदनात्मक केंद्रीय परिषद का गठन किया गया 
  • ( 7 ) संघ लोक सेवा आयोग की सिफ़ारिश की गई | 
  • (8) प्रत्यक्ष चुनाव की शुरुआत 
  • ( 9 ) बर्मा को सम्पूर्ण रूप से भारत से अलग किया गया था 
  • (10) काफी लंबा और जटिल होना 
  • (11) आंशिक रूप से 1936 में लागू ,लेकिन पूर्ण रूप से 1937 मे लागू किया गया था | 
  • (12) प्रान्तों में द्वैध शासन समाप्त कर दिया गया था  
  • (13) सांप्रदायिक प्रणाली का विस्तार कर दिया गया | 
  • (14) विवादों को निपटाने के लिए अंतिम शक्ति “प्रिवी कोंसिल” के पास होना 
  • (15) रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना की गई थी | 
  • (16) गवर्नर जनरल और गवर्नरों की शक्तियों में वृद्धि की गई थी | 
  • (17) केंद्र में द्वैध शासन को लागू करना और प्रान्तों से हटाना |
  • सी राजगोपालाचारी ने 1935 के अधिनियम को “द्वैध शासन प्रणाली से भी बुरा और बिलकुल अस्वीकृत” बताया था |
  • पंडित नेहरू ने 1935 के अधिनियम को “ अनेक ब्रेकों वाला लेकिन इंजन रहित मशीन” की संज्ञा दी थी |
  • 1919 के अधिनियम को “मांटेग्यु चेम्सफोर्ड सुधार” के नाम से जाना जाता है, इसमे मुख्य रूप से निम्न प्रावधान किए थे - 
  • (1) केंद्र में प्रत्यक्ष चुनाव की व्यवस्था करना 
  • (2) प्रान्तों में द्वैध शासन प्रणाली की शुरुआत करना, जो की 1921 से 1937 तक चलती रही 
  • (3) पहली बार महिलाओं को सीमित मात्र में वोट देने का अधिकार दिया गया था 
  • (4 ) केंद्र के बजट को राज्य के बजट से अलग किया गया था 
  • (5) भारत मे “उत्तरदायी शासन” की स्थापना करना 
  • (6) यह अधिनियम अंतिम रूप से 1921 मे लागू किया गया था 
  • ( 7) भारतीय उच्चायुक्त की व्यवस्था की गई 
  • (8) विषयों को केंद्र व राज्यों के मध्य बांटा गया था 
  • (9)  गवर्नर जनरल को अध्यादेश जारी करने की शक्ति, जो की 6 माह के लिए थी |
  • 1909 के अधिनियम को “मोर्ले-मिंटो सुधार अधिनियम” कहा जाता है | इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य उदारवादियों को संतुष्ट करना था | इस अधिनियम की निम्नलिखित विशेषताएँ है –
  •  (1) केंद्र और प्रान्तों की सदस्य संख्या में वृद्धि करना 
  • (2) सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को लागू करना लॉर्ड मिंटो को सांप्रदायिक प्रणाली का पिता कहा जाता है  
  • (3) सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में सदस्य नियुक्त प्रथम भारतीय जो की इतने उच्च पद पर सुशोभित हुए | 
  • (4) प्रत्यक्ष निर्वाचन का प्रारम्भ हुआ |
  • (5) विधायिका के कार्य क्षेत्र का विस्तार किया गया |
  • डॉ. के एम मुंशी द्वारा 1909 के मोर्ले मिंटो सुधार अधिनियम को कांग्रेस के उदारवादियों के लिए रिश्वत कहकर आलोचना की थी |


















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