सात बहनों की कहानी
1947 की आजादी के बाद
आज तक भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और उग्रवाद के बीच चोली-दामन साथ कायम है, भले ही देश आज तरक्की के नए-
नए आयामों को छू रहा है, लेकिन पूर्वोत्तर के राज्य अभी भी विकास की पहुंच से काफी दूर नजर आते हैं और इसकी एक बड़ी वजह है राज्य में अपनी पकड़
जमाए हुआ उग्रवाद
व नक्सलवाद |
आज भी नक्सलवाद व उग्रवाद की समस्या से घिरें है पूर्वोत्तर राज्य
जिसकी वजह ना सिर्फ युवाओं का बल्कि राज्यों का विकास भी मानों थम सा गया है। हालांकि केंद्र में बीजेपी की सरकार आने के बाद से पूर्वोत्तर के राज्यों में विकास की नई पहल जरूर हुई है। तो चलिए आज बताते हैं आपको पूर्वोत्तर की उग्रवाद समस्या और उसकी वजह के बारें में
चर्चा करते है-
पूर्वोत्तर राज्यों की कहानी
पूर्वोत्तर राज्यों की कहानी भी बड़ी रोचक
है,जो की विविधता और राजनीतिक,सामाजिक,आर्थिक समानताओं मे सिमटी हुई है | इस क्षेत्र को “दक्षिण–पूर्व एशिया का प्रवेश द्वार” भी कहा जाता है
तथा इस क्षेत्र सीमाएं चीन,म्यांमार,बांग्लादेश
से लगती है | पूर्वोत्तर में मुख्य रूप से सात राज्य है , इन्हे “ सात बहनों “ के नाम से जाना जाता है |
सात बहनों की उपाधि 1972 में नए राज्यों के उद्घाटन पर “ज्योति प्रसाद सैकिया” द्वारा रेडियो टॉक शो के दौरान त्रिपुरा मे गढ़ा गया था
सात बहनों की उपाधि 1972 में नए राज्यों के उद्घाटन पर “ज्योति प्रसाद सैकिया” द्वारा रेडियो टॉक शो के दौरान त्रिपुरा मे गढ़ा गया था
- आजादी के समय - मणिपुर,त्रिपुरा, और असम थे |
- 1963 मे नागालैंड बना |
- 1972 मे मेघालय और मिजोरम बना |
- 1987 में अरुणाचल प्रदेश बना |
- सात राज्य ( सात बहनें ) :- नागालैंड , अरुणाचल प्रदेश , मणिपुर ,मेघालय , त्रिपुरा,असम ,मिजोरम
पूर्वोत्तर की राजनीति में मुख्य रूप से
तीन मुद्दे हावी रहे
I. स्वायत्तता की माँग (
1970 के दशक )
- इस प्रकार केंद्र सरकार नें धीरे धीरे अलग अलग समय में नवीन राज्य बनाये | असम को तोड़ कर – मेघालय , मिजोरम , अरुणाचल प्रदेश आदि बने थे |
- वर्ष 1972 तक पूर्वोत्तर राज्यों का पुनर्गठन हो चुका था |
- लेकिन स्वायत्तता की मांग बनी रही |
- अलग अलग समुदायों ने अपने लिए राज्यों की मग रखी |
- यधपी स्वायत्तता द्वारा इनको संतुष्ट करने के प्रयास जारी है |
II. अलगाववादी आंदोलन
(1980के दशक )
भारत की आजादी के बाद असम के मिज़ो
पर्वतीय क्षेत्र को स्वायत्त जिला बना दिया था |
· मिज़ो लोगों का मानना था
की वह कभी ब्रिटिश इंडिया का भाग नहीं रहे इसलिए भारत से उनका नाता नहीं है |
·1959 मे इस इलाके मे
भारी अकाल पड़ा जिससे असम की सरकार निपटने मे असफल रही |
· अकाल के बाद ही
अलगाववादी आंदोलन को जनसमर्थन मिलना शुरू हुआ था |
· लालडेंगा
के नेतृत्व मे “मिज़ो नेशनल फ्रंट” बनाया गया |
·1966 मे “मिज़ो नेशनल
फ्रंट”ने आजादी की मांग रखी और सशस्त्र विद्रोह को अंजाम दिया जो लगभग दो दशक तक
चला था | इसमे दोनों ही पक्षों को भारी हानी उठानी पड़ी |
·“मिज़ो नेशनल फ्रंट” ने गुरिल्ला
युद्ध का सहारा लिया | और आज के बांग्लादेश में
अपने ठिकाने बनाये |
· वर्ष 1986 में
प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और
लालडेंगा के बीच शांति समझौता हुआ – जिसके तहत –
a.मिजोरम
को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला |
b.विशेष
अधिकार भी दिये गए |
c.“मिज़ो
नेशनल फ्रंट”अलगाववादी आंदोलन छोड़ने पर राजी हुआ |
d.लालडेंगा
मुख्यमंत्री बना |
e.यह
समझौता मिजोरम के इतिहास मे निर्णायक साबित हुआ |
f. आज पूर्वोत्तर का सबसे
शांत राज्य है |
· नागालैंड अलगाववादी
आंदोलन की कहानी भी “अंगमी जापू फ़िजो “
के नेतृत्व मे 1951 में शुरू हुआ जिसके तहत अपने को भारत से आजाद घोषित कर दिया था
| हिंसक दौर चला एक तबके ने समझौता किया लेकिन दूसरे तबके ने इसे मानने से
इंकार कर दिया | आज तक नागालैंड की समस्या का समाधान नहीं हो
पाया है |
III. बाहरी लोगों का विरोध
करना (1980 के दशक )
पूर्वोत्तर की एक समस्या
अन्य राज्यों से आए लोग या अन्य देशों से आए लोग |
आम जनता इन्हें “बाहरी “कहती है, क्योंकि रोजगार,और राजनीतिक सत्ता में या अन्य जगहों पर इनको अपना प्रतिद्वंदी मानती है
·1979 से 1985 तक असम में
बाहरी लोगों के खिलाफ आंदोलन चला |( संदेह
है कि बाहरी बांग्लादेशी मुस्लिम है उन्हें बाहर निकालना चाहिए |)
·1979 में “आसू “ (ऑल असम
स्टूडेंट्स यूनियन –AASU ) छात्र संगठन था जो
विदेशियों की पहचान कर उन्हें बाहर निकालने के लिए आंदोलन किया |
·1985 में राजीव गाँधी और
आसू नेताओं के बीच समझौता हुआ | इसके तहत बाहरी
लोगों की पहचान कर उन्हें वापस भेजा जाएगा |
· ‘आसू’
और ‘असम गण संग्राम परिषद’ मिलकर एक नई
पार्टी बनी जिसका नाम हुआ – “असम गण परिषद “|
· लेकिन बाहरी लोगों का
मुद्दा आज भी समस्या बना हुआ है |
· जुलाई – अगस्त 2018 मे
केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर (NRC)
असम से बाहरी लोगों को निकालने को लेकर संसद में हँगामा भी हुआ ,
लेकिन सरकार ने कहा की बाहर के लोगों को निकाला जायेगा,
क्योंकि इन लोगों से राष्ट्रीयता को खतरा है |
सिक्किम का भारत
में विलय
- आजादी के समय सिक्किम न ही भारत का अंग था और न ही संप्रभु राष्ट्र था |
- सिक्किम का रक्षा और विदेशी मामले भारत सरकार के पास था |
- जबकि आंतरिक प्रशासन राजा ‘च्योगाल’ के हाथों में थी |
- सिक्किम का बड़ा तबका नेपालियों का था जबकि ‘च्योगाल’ लेपचा-भूटिया अल्पसंख्यक था |
- इस प्रकार बहुसंख्यक लोगों ने भारत सरकार से सहायता मांगी और समर्थन हासिल किया |
- 1974 में पहला लोकतान्त्रिक चुनाव हुआ जिसमे सिक्किम कांग्रेस को भारी बहुमत मिला |
- 1975 में सिक्किम का विलय भारत में करने के लिए जनमत संग्रह किया जिसमें सफलता मिली और सिक्किम भारत का 22 वां राज्य बन गया |
पूर्वोत्तर
राज्यों की की हालात कैसे सुधारे :-
- रोजगार के लिए सार्थक प्रयास और अवसर पैदा करने होंगे | ताकि युवा पीढ़ी को उग्रवाद और नक्सलवाद के चंगुल से बाहर निकाला जा सके |
- गरीबी निवारण हेतु केंद्र सरकार व राज्य सरकारों की नीतियों को वास्तविक रूप में लोगों तक पहुँचाना होगा |
- सरकार , प्रशासन और जनता में आपसी विश्वास की बहाली तेज करनी होगी |
- स्थानीय स्तर पर सरकारों को जन-कल्याण कारी योजनाओं को लोगों तक पहुँच में भागीदारी विकसित करनी होगी |
- पड़ौसी देशों से केंद्र ,राज्य और स्थानीय सरकारों को बहकावे से सतर्क रहना होगा तथा लोगों में सकारात्मक ऊर्जा का संचरण करते रहना होगा |
- सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम तो लागू कर रखा है, इस पर सावधानी पूर्वक ही सरकारों को कदम उठाना होगा |
- लोगों में आपसी विश्वास बहाली पर लगातार कार्य करना होगा |
- शिक्षा ,स्वास्थ्य ,रोजगार ,आदि नीतियों की पहुँच जनता तक आसान करनी होगी |
- दुष्प्रचार , बहकावा , उकसाव की नीतियों से सरकारों को स्वयं और जनता दोनों को जागरूक रहना होगा |
- सुरक्षा बलों को भी सतर्क रहकर आम लोगों में अपनी विश्वास बहाली बनाए रखनी होगी |
- सरकारों को उग्रवाद व नक्सलवाद पर कठोर रुख अपनाकर इन्हें खत्म करना है |
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ReplyDeleteथैंक्स
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