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समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व NCERT SOLUTION CLASS XII POLITICAL SCIENCE IN HINDI

अध्याय 3 - समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व NCERT SOLUTION CLASS XII POLITICAL SCIENCE IN HINDI


समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व 
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सन् 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ ही अमरीकी वर्चस्व प्रारम्भ हो गया। अर्थात शीत युद्ध की समाप्ति के साथ ही संयुक्त राज्य अमरीका विश्व की सबसे बड़ी ताकत बन कर उभरा और अब उसे टक्कर देने वाली शक्ति विश्व में मौजूद नही थी। इस प्रकार 1991 के बाद वाले दौर को अमरीकी प्रभुत्व या एक ध्रुवीय विश्व का दौर कहा जाने लगा। कुछ हद तक कहा जा सकता हैं कि अमेरीकी वर्चस्व की झलक तो सन् 1945 से ही नजर आने लगी थी जो 1991 में आते – आते पूरी तरह स्पष्ट हो गई। आज भी वैश्विक संस्थाओं व अन्य माध्यमों से दुनियाँ में अपनी धाक कायम रखने में लगा हुआ है |

समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व महत्वपूर्ण बिन्दु 


  • अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में ताकत का एक ही केंद्र हो तो इसे वर्चस्व कहा जाता है | वर्चस्व के लिए Hegemonशब्द का प्रयोग किया गया है |
  • विश्व राजनीति में भी विभिन्न देश या देशों के समूह ताकत पाने और कायम रखने की लगातार कोशिश करते है, यह ताकत जैसे – आर्थिक ,राजनीतिक ,सांस्कृतिक ,आदि के रूप में होती है |
  • 11 सितंबर,2001 को 9/11 की  आतंकी घटना हुई जिसमे अमरीका के दो महत्वपूर्ण टॉवर- “वर्ड ट्रेड सेंटर” और “पेंटागन” ( रक्षा विभाग ) उड़ा दिये गए | इस हमले में लगभग 3000 लोग मारे गए थे |
  • “नाइन एलेवन”? इसे नाइन एलेवन इसलिए कहा जाता हे क्योकि अमरीका में महीने को तारीख से पहले लिखनें का चलन हे इसी का साक्षिप्त रूप 9/11 है |
  • अमरीका का सैन्य खर्च आज भी दुनियाँ में सबसे ज्यादा है लगभग  (456 अरब डॉलर ) | जो की चीन ,रूस ,फ्रांस ,ब्रिटेन ,जापान , जर्मनी ,इटली ,सऊदी अरब ,भारत ,दक्षिण कोरिया ,ऑस्ट्रेलिया ,स्पेन (449 अरब डॉलर ) से भी ज्यादा है |
  • अमरीका आज भी विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है |
  •  अमरीकी वर्चस्व की सही शुरुआत 1991 से हुई थी | यधपी सही मायनों में देखा जाए तो वर्चस्व की शुरुआत 1945 से ही देखी जा सकती है|
  • “हाईवे ऑफ डेथ” ( मौत का रास्ता )- 1991 प्रथम खड़ी युद्ध अमरीका द्वारा इराक पर किया गया विमानी हमला जिससे कुवैत और बसरा की सड़कों पर लोगों व वाहनों का ढेर लाशों में तब्दील हो गया था | अनेक विद्वानों ने इसे “युद्ध अपराध” की संज्ञा दी थी |
  • बैंडवेगन की नीति :- ताकतवर देश के विरुद्ध होने के स्थान पर उसके वर्चस्व में रहते हुए अवसरों का फायदा उठाना ,इसे “बैंडवेगन की नीति” अथवा”जैसी बहे बयार पीठ तैसी किजै” |
  • ब्रेटनवुड प्रणाली :- अमरीका द्वारा दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह प्रणाली कायम हुई थी जिसमे ढाँचागत ताकत द्वारा वैश्विक अर्थव्यवस्था को खास शक्ल में ढालने की नीति ,जो आज भी कायम है|
  • छिपाने की रणनीति :- अर्थात वर्चस्ववादी शक्ति से यथासंभव दूर रहना |इस रणनीति में चीन ,रूस ,और यूरोपीय संघ आदि हे जो अमरीका की नजर से दूर रहते हे और ज्यादा एवं अनुचित ढंग से नाराज भी नहीं करते |


समकालीन विश्व राजनीति और अमरीका द्वारा चलाये गए महत्वपूर्ण सैन्य अभियान


क्रम. संख्या

सैन्य अभियान का नाम

अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष

सैन्य अभियान का वर्ष

अभियानों की
विस्तार से जानकारी

सैन्य अभियानों का परिणाम

1.

ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म

जॉर्ज सीनियर बुश

1991
* इस सैन्य अभियान में 34 देशों की बहुराष्ट्रीय सेना द्वारा इराक के खिलाफ जिसने कुवैत पर अनधिकृत कब्जा कर लिया था|
* इसे कंप्यूटर युद्ध ,प्रथम खाड़ी युद्ध ,तथा वीडियो गेम वार भी कहा जाता है

कुवैत को मुक्त कराया गया |

2.

ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच

बिल क्लिंटन

1998   

*कैन्या  और तंजानिया में अमरीकी दूतावासों पर बमबारी के विरोध में सूडान व अफगानिस्तान में अलकायदा के ठिकानों पर मिसाइली हमला करना |

अलकायदा को मुँहतोड़ जबाब देना |

3.

ऑपरेशन एंडयूरिंग फ़्रीडम

जॉर्ज डब्लू बुश

2001

9/11 की घटना के उपरांत अलकायदा और तालिबानी शासन के विरुद्ध विश्व व्यापी आतंकवाद के नाम से किया गया युद्ध |

तालिबान की समाप्ती और अलकायदा का कमजोर पड़ना |

4.

ऑपरेशन इराक़ी फ़्रीडम

जॉर्ज डब्लू बुश

2003

अमरीका व 40 से ज्यादा देशों द्वारा (आकांक्षियों के महाजोट ) यूएनओ की बिना अनुमति के युद्ध किया जिसके कारण सुरक्षा परिषद द्वारा आलोचना भी की गई |

सद्दाम हुसेन का अंत होना |


समकालीन विश्व राजनीति में अमरीकी वर्चस्व के तीन मुख्य रूप
  • सैन्य शक्ति के रूप में :-अमरीका की महत्वपूर्ण ताकत उसकी सैन्य, प्रोधोगिकी और अनुसंधान द्वारा धाक जो आज भी कायम है |
  • ढाँचागत ताकत का होना :- इसका सबसे अच्छा उदाहरण (SLOCs) हे अर्थात “सी लेनऑव कम्युनिकेशन्स”- समुद्री व्यापार मार्ग | जो कि वैश्विक मुक्त व्यापार खुले समुंद्री मार्गों के बिना संभव नहीं है |
  • सांस्कृतिक वर्चस्व की नीति :- अर्थात “सहमति गढ़ने कि ताकत” का होना | जो आपसी रजामंदी से बनती है |


समकालीन विश्व राजनीति में अमरीकी शक्ति के रास्ते में तीन महत्वपूर्ण अवरोध

आजअन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य मेंअमेरिका बहुत शक्तिशाली देश हैविशेषकर शीतयुद्ध की समाप्ति के पश्चात्  विश्वकी प्रत्येक अन्तर्राष्ट्रीय घटना चाहे वह आर्थिक होराजनीतिक हो,सांस्कृतिक हो,या कोई अन्य हो,सभी पर अमेरिका के प्रभाव को देखा जा सकता है l हाल ही में 22 अक्टूबर 2018 को भी अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस को धमकी दी थी की वह उसके साथ ( इंटरमिडियट रेंज न्यूक्लीयर फोर्सेज ) परमाणु शक्ति समझौता खत्म करेंगे |  यधपी अमेरिकी  व्यवस्था में कुछ इस प्रकार की सीमाएं है l जो उसे आगे बढ़ने से रोकती है lअमेरिकी वर्चस्व की राह में मुख्य रूप से तीन व्यवधान है -

  • अमरीका की संस्थागत बनावट – अमेरिका के वर्चस्व का प्रथम व्यवधान अमेरिका की स्वयं की संस्थागत बनावट है अमेरिका में सरकार के तीनों अंग एक-दुसरे से स्वतंत्र है l तथा कार्यपालिका अमेरिकी सैनिक अभियानों पर अंकुश लगता है l अर्थात कार्यपालिका द्वारा सैन्य शक्ति पर अंकुश लगाना |
  • अमरीकी समाज की उन्मुक्त प्रवृति का होना – सरकार की नीतियों की आलोचना करना अमेरिकन वर्चस्व की राह में एक-दुसरे व्यवधान अमेरिकन उन्मुक्त समाज है|अमेरिकी उन्मुक्त समाज में शासन के उदेश्य और ढंगों को लेकर संदेह बना रहता है |
  • नाटो का होना – अर्थात नाटो में शामिल राष्ट्र भी लगाम लगा सकते है अमेरिका के वर्चस्व के मार्ग में आने वाले दिनों में अमेरिकी वर्चस्व को "नाटो" द्वारा ही कम किया जा सकता है |


समकालीन विश्व राजनीति में अमरीकी वर्चस्व से निपटने के उपाय

आज वैश्विक स्तर पर निश्चित रूप से बदलाव आया है, दुनिया बहुध्रुवीय व्यवस्था में तब्दील हो रही है, लेकिन अभी भी बहुत लंबा  रास्ता तय करना बाकी है | किसी भी राष्ट्र का वर्चश्व तोड़ना है तो समूहिक रणनीति पर काम करना होगा साथ ही राष्ट्रों को आपसी द्विपक्षीय सम्बन्धों को तेजी से सुधारना होगा और  बहुपक्षीय स्तर पर कार्य करना होगा -
  • भारत ,रूस ,चीन , जापान जैसे देश मिलकर चुनौती दे सकते है लेकिन पहले आपसी मतभेद समाप्त करने जरूरी है |
  • अमरीका से निश्चित दूरी बनाकर अपना विकास करना |
  • मीडिया ,बुद्धिजीवी ,कलाकार , लेखक आदि द्वारा भी वर्चस्व का विरोध किया जा सकता है |



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